दौसा/लालसोट। सर्दी की दस्तक शुरू होने के साथ ही दौसा जिले के मोरेल बांध पर प्रावासी पक्षियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस बार प्रदेश में मानसून बारिश अच्छी होने के साथ ही मोरेल बांध में 25 फिट से ऊपर पानी आया है। जो गतवर्ष से लगभग 8 फिट ज्यादा है।
मोरेल बांध के प्रवासी पक्षियों के डेटा संधारण व उन पर शोध कार्य कर रहे राजेश पायलट राजकीय महाविद्यालय लालसोट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुभाष पहाड़िया ने बताया कि अभी तक लगभग 60 प्रकार की प्रजातियों के लगभग 8 हजार प्रवासी पक्षी मोरेल बांध पहुंच चुके है, और अभी नवम्बर तक लगभग तीस हजार पक्षी यहां पहुंचने की संभावना है। बांध में पर्याप्त मात्रा में मछलियां, मोलस्क, क्रस्टेसियन व कीट उपलब्ध होने के कारण यहां प्रावासी पक्षी पिछले पांच सालों से बहुतायत में आ रहे है।
पक्षीविद डॉ सुभाष पहाड़िया के अनुसार अभी लगभग 60 प्रजातियों के हजारों पक्षी आ चुके है।जिनमे प्रमुखतः मोरेल बांध पर डेलमेसियन पेलिकन, गार्गेनि, नॉर्दर्न शोवलर, पलास गल, ब्रॉउन हेडेड गल, सेंडरलिंग, प्रेटिनकोल, मार्श सैंडपाइपर, वुडसेंडपैपर, कॉमन सैंडपाइपर, रफ, ब्लैकटेल्ड गोडविट, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रोजी पेलिकन, ऑस्प्रे, लिटल स्टिन्ट, वुलीनेक्ड स्टोर्क, पाइड अवोसेट, रूडी शेल्डक, रीवर टर्न, व्हिसकर टर्न, ग्रेट कॉरमोरेंट, कॉमन रेडशेंक, आदि प्रजातियों के पक्षी अधिक संख्या में मौजूद है। पिछली बार की अपेक्षा इस बार प्रवासी पक्षी जल्दी आये है।
डॉ पहाड़िया के अनुसार जिंदा रहने के लिए सिर्फ मनुष्य ही संघर्ष नही करते अपितु दुनिया के सभी जीव जंतु भी संघर्ष करते है।
पक्षियों में माइग्रेशन भी विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिये और भोजन, आवास और प्रजनन जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिये पक्षी भी हजारो किलोमीटर की यात्रा दुनिया के विभिन्न देशो जैसे रुस मंगोलिया दक्षिणी अफ्रीका, चीन आदि देशों से भारत आते है। उत्तरी गोलार्ध में जब अक्टूबर महीने में बर्फ गिरने के कारण भोजन और आवास की उपलब्धता नहीं होती है तो अधिकांश परिंदे दूसरे देशों का रुख करते हैं। भारत में इस वक्त अनुकूल वातावरण होने के कारण ये पक्षी यहां 4 माह के लिए प्रवास पर आते है।
आखिर किस मार्ग से ये परिंदे भारत मे आते है।
मुख्य रूप से माइग्रेशन हेतु परिंदे तीन प्रमुख फ्लाईवे का उपयोग करते है।
पहला सेंट्रल एशियाई फ्लइवे, दूसरा पूर्वी एशियाई फ्लाईवे और तीसरा पूर्वी एशियाई-आस्ट्रेलियाई फ्लाईवे है।
भारत मे मुख्य रूप से पक्षी सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे का उपयोग माइग्रेशन के लिए करते है। यह फ्लाइवे आर्कटिक और हिंद महासागरों के बीच यूरेशिया के एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है। सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे जो भारत समेत उत्तर, मध्य और दक्षिण एशिया और ट्रांस-काकेशस के 30 देशों को कवर करता है। इन 30 देशों में प्रमुख रूप से अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, बहरीन, चीन जनवादी गणराज्य, जार्जिया, ईरान गणराज्य, कजाकिस्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान, रूसी संघ, सऊदी अरब, श्रीलंका, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम चागोस द्वीप समूह और उज़्बेकिस्तान है। इसमें जलपक्षियों के कई महत्वपूर्ण प्रवास मार्ग शामिल है ।
पक्षीविद डॉ सुभाष पहाड़िया के अनुसार पक्षियो में प्रवास घड़ी के एक पेंडुलम की भांति कार्य करता है। जिसमे पेंडुलम अपने स्थान से जाने के बाद एक निश्चित समय के पश्चात अपने स्थान पर पुनः वापिस आ जाता है। परिंदों के पास एक बेहतरीन स्वचालित तंत्र होता है, जिससे वो समय का निर्धारण करते हैं। इस कार्य हेतु जैविक घड़ी अपना महत्वपूर्ण रोल निभाती है। ये जैविक घड़ी आँख के रेटिना मस्तिष्क में स्थित पीनियल ग्रंथी व हाइपोथैलेमस में स्थित होती है जो सूर्य के प्रकाश से घंटे, दिन, रात, महीनों की गणना करती रहती हैं। ये जैविक घड़ी एक केंद्रीय तंत्र की तरह व्यवहार करती हैं। जो पक्षियों के लिए एक कलेंडर का निर्माण करती है। बेहद उम्दा किस्म का ये ‘हारमोनल सिस्टम’ पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होता है। यही वजह है कि नवजात पक्षियों में भी यह जैविक घड़ी एक हार्मोनल सिस्टम के जरिये अपना कार्य करती है। तभी तो ये नवजात परिंदे अपने परिवार के साथ नियत तिथि पर देश छोड़ते हैं। फिर वापस लौटते हैं। लौटकर घोंसला बनाते हैं। प्रजनन करते हैं। बच्चों के अंडों से निकलकर उड़ना सीखने तक वहां रहते हैं। फिर एक दिन अपना घोंसला छोड़कर प्रवास करते है।
मोरेल बांध और प्रवासी पक्षी
मोरेल बांध पर यूं तो शीतकालीन प्रवासी पक्षी अक्टूबर माह की शुरुआत से आना प्रारंभ होते है। लेकिन इस बार सितंबर माह के प्रारंभ में ही लगभग 10 प्रकार की प्रजातियों के सैंकड़ों पक्षी जो लंबी दूरी से प्रवास करते है। जिले के सबसे बड़े वेटलैंड मोरेल बांध पर आ चुके है।
डॉ सुभाष पहाड़िया ने बताया की ये आश्चर्यजनक है कि लंबी दूरी के प्रवासी पक्षी जो अपने प्रजनन क्षेत्र दक्षिणी और दक्षिणीपूर्वी व उत्तरी एशिया से गर्म ट्रोपिकल क्षेत्रों की ओर प्रवास करते है।इस बार लगभग 20 दिन पहले ही शीतकालीन प्रवास पर मोरेल बांध पहुंच चुके है। ढूँढाड़ क्षेत्र में सवाईमाधोपुर व दौसा जिले के सीमा पर स्थित यह वेटलैंड अपने विशाल जलभराव व लगभग 90 प्रकार के जलीय पक्षी प्रजातियों व 80 प्रकार की स्थलीय पक्षी प्रजातियों के साथ ही जैवविविधता से समृद्ध है। इसी कारण यहाँ शीतकालीन प्रवास पर 20 से 30 हजार पक्षी प्रतिवर्ष आते है। इन पक्षियों में से लगभग 12 प्रकार की प्रजातियों के ऐसे पक्षी भी शामिल है जो आई. यू.सी. इन की रेड डेटा बुक में संकटापन्न व संकटग्रस्त सूची में शामिल है।
डॉ पहाड़िया के अनुसार मोरेल बांध का महत्व इस बार और भी महत्वपूर्णपूर्ण हो गया है कि इस वेटलैंड पर कई पक्षी प्रजातियां प्रजनन भी करने लगी है। जिनमे पेंटेड स्टोर्क,लिटिल कोरमोरेंट, ग्रे हेरोन, पर्पल हेरोन, कॉमन टील। मोरेल बांध का स्वच्छ व अनुकूल वातावरण व पर्याप्त भोजन की उपलब्धता इन पक्षियों को प्रवास के लिए आकर्षित करती है। मोरेल बांध पर पक्षियों की सँख्या और जैवविविधता को देखते हुए इस बांध को कन्जर्वेशन रिजर्व घोषित करना चाहिये व इसके संरक्षण के लिए सार्थक प्रयास जरूरी है।
डॉ पहाड़िया ने बताया कि मैं पिछले 5 साल से प्रवासी पक्षियों का डेटा संधारण कर रहा हु लेकिन ये पहली बार है जब लंबी दूरी के प्रवासी पक्षी इतना जल्दी प्रवास पर आए है। इस बार प्रवासी पक्षियों का जल्दी आने का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, अपने मूल स्थान पर प्रजननकाल पूरा नही करने या अन्य कोई कारण भी हो सकते है ।
कौन है पक्षीविद डॉ सुभाष पहाड़िया
राजेश पायलट राजकीय महाविद्यालय में प्राणी शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर है। पिछले 20 साल से प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में अध्यापन कार्य कर रहे है। पिछले 5 साल से मोरेल बांध की जैवविविधता और प्रावासी पक्षियों पर शोध कार्य कर रहे है। मोरेल बांध को कंजेर्वेशन रिज़र्व बनाने के लिए प्रयासरत है। इस कार्य के लिए 2 बार जिला कलेक्टर दौसा के द्वारा सम्मानित भी किया गया है। उपखंड स्तर पर भी 3 बार पर्यावरण संरक्षण हेतु इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। हाल ही में राजस्थान वन विभाग द्वारा वन प्रहरी पुरुस्कार उप वन संरक्षक व जिला कलेक्टर के द्वारा प्रदान किया गया है। डॉ सुभाष पहाड़िया के द्वारा दो पुस्तके लिखी गई है तथा 10 शोध पत्र राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में प्रकाशित हो चुके है।