शिक्षक, समाज सेवक और नागर समाज के आधारस्तंभ नागर साहब
निर्वाण: 26 नवंबर 2024
ज्ञान, सेवा और समर्पण का जीवन श्री महेंद्र कुमार नागर जी की स्मृतियों को समर्पित है। जिनका जीवन ज्ञान की ज्योति, निस्वार्थ सेवा और नागर समाज के प्रति अटूट समर्पण की एक प्रेरणादायक गाथा है। राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास ही दौसा तहसील अब दौसा जनपद स्थित जसोता गांव की धरा पर जन्मे नागर साहब ने एक शिक्षक, समाज सेवक और नागर समाज के आधारस्तंभ के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
एक गौरवशाली विरासत और संघर्षमय जीवन
श्री नागर जी का जन्म 1 मार्च 1943 को प्रतिष्ठित नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी विद्वता और परोपकार की परंपरा को पोषित किया। उनके पिताजी श्री बृजमोहन नागर और माताजी श्रीमती चमेली नागर ने उन्हें उच्च मानवीय मूल्यों की शिक्षा दी। उनके दादाजी श्री भौरीलाल नागर ('हिटलर साहब') और दादी श्रीमती कलावती नागर की प्रेरणा उनके साथ रही। पड़दादा जी श्री रामनाथ भट्ट जी महाराज पड़दादी श्रीमती छोटा देवी थी। जसोता स्थित नागर परिवार विद्वान पंडितों का परिवार रहा है। पूर्व राजपरिवार की ओर से भट्ट जी महाराज की उपाधि भी मिली हुई थी।पुराने दौर की समृद्धि का प्रतीक यह परिवार पशुधन ऊँट, घोड़े, गाय, भैस और बकरियों से युक्त था। गांव में राजपरिवार द्वारा सुंदर हवेलिया रहने को मिली हुई थी।
नागर जी का जीवन संघर्ष युक्त रहा। 10वीं/11वीं पूर्ण करते ही उन्होंने जलदाय विभाग में नौकरी प्रारम्भ कर राजकीय सेवा प्रारंभ कर दी। हालांकि, एक दूरदृष्टा होने के कारण वह इस कार्य से संतुष्ट नहीं हुए और शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
शिक्षण के प्रति अटूट निष्ठा और गुरु का सफर
जलदाय विभाग की नौकरी के साथ ही, उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, एसटीसी/एचटीसी की ट्रेनिंग ली और उसके बाद शिक्षा विभाग में अध्यापक बन गए।
उनकी प्रथम नियुक्ति 1964 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय, बजाज नगर (गांधीनगर रेलवे स्टेशन के पास) में हुई थी। उनकी सेवानिवृत्ति 2001 में राजकीय माध्यमिक विद्यालय, झर (आगरा रोड) से हुई।
शिक्षक बनने के बाद भी, नागर जी ने ज्ञान की साधना जारी रखी। उन्होंने स्नातक शिक्षा और जोधपुर से शिक्षा स्नातक (B.Ed.) पूर्ण किया। उन्होंने अपने सेवाकाल का अधिकतम समय जयपुर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, रथखाना (गणगौरी बाजार) में दिया। यहाँ उन्होंने केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि रोजगार परक शिक्षा पर भी बल दिया। उन्होंने 'सीखो और कमाओ' कार्यक्रम और स्काउटिंग-गाइडिंग के माध्यम से बच्चों को आत्मनिर्भर रहने की शिक्षा दी। वे कमजोर विद्यार्थियों को अतिरिक्त शिक्षा देकर उनकी कमजोरियों को दूर करते थे। इस सफर में उनके साथी श्री वेदप्रकाश अग्रवाल, श्री मोहनलाल टेलर, श्री हरसहाय जी आदि का सहयोग भी स्मरणीय रहा।
सामाजिक सक्रियता और नागर समाज के आधारस्तंभ
नागर जी की सक्रियता बाल्यकाल से ही थी। वह गांव में संघ शाखाओं और दौसा हाई स्कूल में एनसीसी, स्काउटिंग-गाइडिंग में सक्रिय रहे। सेवानिवृत्ति के बाद, वह जयपुर में मानसरोवर पांच सेक्टर समिति के अध्यक्ष और संरक्षक रहे। मानसरोवर ब्राह्मण समाज के भी सक्रिय कार्यकर्ता रहे।
उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान नागर ब्राह्मण समाज के लिए रहा। जहाँ उन्होंने एक सजग सारथी के रूप में नेतृत्व किया। वह क्रमशः अध्यक्ष, सचिव, ट्रस्टी, और अंत में प्रबंध ट्रस्टी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
उनका ऐतिहासिक कार्य समाज की धर्मशाला का जीर्णोद्धार करवाना और अवैध किराएदारों को खाली करवाना था। जिससे यह समाज के मिलन और उत्थान का महत्वपूर्ण केंद्र बनी।
उनकी कार्य करने की क्षमता उनकी आयु से अप्रभावित थी। उनमें हमेशा युवा ऊर्जा बनी रहती थी। उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी नागर समाज की कार्यकारिणी को उत्साह और प्रेरणा प्रदान करते हैं।
पारिवारिक जीवन और सेवा की विरासत
श्री नागर का विवाह 23 जनवरी 1967 को श्रीमती करुणा नागर से हुआ। ससुराल मुरादाबाद था। उनके धर्मपिता और माता का नाम श्री कामेश्वर नाथ नागर एवं श्रीमती मालती नागर था।
उनके तीन पुत्र क्रमशः अजय, संजय, आनंद और एक पुत्री रजनी हैं। सभी विवाहित हैं और अपने-अपने कार्यों में लगे हुए हैं।
पिता की समाज सेवा की परंपरा को उनके पुत्र और पौत्र भी आगे बढ़ा रहे हैं।
ज्येष्ठ पुत्र अजय नागर वर्तमान में नागर समाज के ट्रस्टी के रूप में कार्यरत हैं। पूर्व में अध्यक्ष व सचिव भी रह चुके हैं। द्वितीय पुत्र संजय नागर वर्तमान में सहायक सचिव के रूप में कार्यरत हैं। पूर्व में सचिव रह चुके हैं। पौत्र भावेश नागर वर्तमान में नागर समाज की कार्यकारिणी में कार्यकारिणी सदस्य के रूप में सेवा कर रहे हैं।
26 नवंबर 2024 को महामना चिरनिद्रा में लीन हो गए। श्री महेंद्र कुमार नागर का शांत, दृढ़ और कर्मठ स्वभाव सदैव याद किया जाएगा। नागर समाज व दौसा व जयपुर ने एक सच्चा मार्गदर्शक, एक समर्पित शिक्षक, और नागर समाज का एक अनमोल आधारस्तंभ खो दिया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी ज्ञान की ज्योति, सेवा की भावना और पारिवारिक मूल्यों की विरासत सदैव हमें प्रेरित करती रहेगी और उनका आशीर्वाद हम सब पर बना रहे।