आज घर घर मे होगी घट स्थापना


अजय नागर
आज से नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और घर घर 9 दिन तक मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाएगी। मां दुर्गा की पूजा से जीवन में भय, विघ्न और शत्रुओं का नाश होता है। नवरात्र के पहले दिन सुबह संकल्प रूपी कलश स्थापना की जाती है। भक्त दिन भर उपवास रखते हैं। 

आइए जानते हैं नवरात्रि का महत्व
 

नवरात्रि पर्व को मां दुर्गा की भक्ति और शक्ति पूजा के दिन माने जाते हैं। नवरात्रों में देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग शक्ति स्वरूप - क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री देवी की पूजा होती है। नवरात्र वर्ष में दो बार आते हैं। प्रथम विक्रम संवत के पहले दिन, चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चैत्र नवरात्र होते है। छह महीने बाद आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक शारदीय नवरात्र आते हैं।

नवरात्रि में रखा जाता है उपवास

इन रात्रियों में ग्रहों के अद्भुत योग के कारण ब्रह्मांड दिव्य ऊर्जाओं से भर जाता है। इन ऊर्जाओं को अपने शरीर में अनुभव करने के लिए नवरात्र में यज्ञ, भजन, पूजन, मंत्र जप, ध्यान आदि साधनाएं की जाती है। संयमित जीवन जीकर उपवास रखा जाता है। केवल सात्विक आहार लेते हैं। जिससे शरीर शुद्ध रहता है। दिन भर भगवती भाव का शुद्ध विचार रखते हैं।


नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना

नवरात्र के पहले दिन सुबह संकल्प रूपी कलश स्थापना की जाती है। यह कलश सुख-समृद्धि और मगंल कामनाओं का प्रतीक है। कलश के साथ ही बालू की वेदी बनाकर या किसी पात्र में जौ बोए जाते हैं। जौ बोने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। जौ को सृष्टि की पहली फसल के रूप में भी माना जाता है। साथ ही मां दुर्गा की मूर्ति को स्थापित कर उसको सजाकर अखंड दीप जलाया जाता है। अंतिम दिन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर पूजन किया जाता है। उनको भोजन भी कराया जाता है।


नवरात्रि में साधना का विशेष महत्व

मन बड़ा चंचल होता है। मन की एकाग्रता के लिए रात की साधना का बड़ा महत्व है। क्योंकि रात को प्रकृति शांत हो जाती है। इसी कारण दीवार पर टंगी घड़ी में सेकंड की सुई तक की आवाज सुनाई देने लगती है। दिन में सूर्य की किरणें और अन्य कोलाहल होने के कारण ब्रह्मांडीय तरंगों में रुकावट बनी रहती है, जिस कारण ध्यान नहीं लग पाता है। इसी कारण शिवरात्रि, नवरात्रि, होली, दीपावली आदि पर्वों की रात्रि साधना की जाती है।


रात्रि में करें कुण्डलिनी जागरण

साधक कमर-गर्दन सीधा कर, आंख बंदकर बैठ जाते हैं। रीढ़ को सीधा करके बैठने से हमारी तरफ ब्रह्मांडीय ऊर्जा आकर्षित होती हैं। अब साधक शक्ति मंत्रों का जप करता है। जिससे रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में सुषुम्ना नाड़ी के भीतर ऊर्जा का अनुभव होने लगता हैं। जिसको कुण्डलिनी जागरण कहते हैं। हर रात यह शक्ति ऊपर के चक्र को जगाने लगती है और अंतिम रात्रि को शक्ति पूरी तरह जागकर व्यक्ति को मुक्त भाव में ले आती है। कुण्डलिनी जागरण ही हमारे भीतर देवी जागरण कहलाता है।


नवरात्रि से बदलता है ऋतूकाल

ऋतू संधिकाल यानी बदलते मौसम में रोगाणु के शरीर पर आक्रमण बढ़ जाता है। इस मौसम में वात, पित्त और कफ तीनों दोष असंतुलित होने से शरीर का रक्षा तंत्र कमजोर पड़ जाता है। जिससे शरीर में बीमारियां बढ़ने लगती है। इसलिए शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नवरात्र में नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, और भाव शुद्धि और ध्यान कर बीमारियों से रक्षा करते हैं। हवन करने से वातावरण में फैले रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। नए कार्यों के आरंभ के लिए ये दिन बड़े शुभ माने जाते हैं।


गुजरात और बंगाल का है विशेष महत्व

नवरात्रि में देवी के 51 शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर मेले लगते हैं। यूं तो यह पर्व भारत वर्ष में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लेकिन गुजरात और बंगाल में इसको एक विशाल रूप दिया जाता है। गुजरात में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए आरती से पहले गरबा नृत्य किया जाता है। आरती के बाद डांडिया खेला जाता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्य त्यौहार है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों को सजाकर सामूहिक पूजा की जाती है। नवरात्र की पहली रात से ही रामलीलाओं का आयोजन शुरू हो जाता है। जो दशहरे के दिन रावण दहन के साथ पूर्ण हो जाता है। नवरात्र के अगले दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। नवरात्रि स्थापना से लेकर दशहरा तक का समय भारतवर्ष में उत्साह से परिपूर्ण होता है। मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन में भय, विघ्न और शत्रुओं का नाश होकर सुख-समृद्धि आती है। सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।

स्थापना मुहूर्त

3 अक्तूबर को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 6.15 से 7.22 बजे तक है। इसके बाद दोपहर में 11.46 से 12.33 तक है।
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