व्यंग्य को हास्य की वैशाखियों की ज़रूरत नहीं: डॉ. जनमेजय
व्यंग्य संग्रह 'पुस्तक मेले में खोई भाषा ! का नोएडा में विमोचन 

जयपुर। देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य को हास्य की वैशाखियों की ज़रूरत नहीं। यह विधा समाज में व्याप्त विसंगतियों के विरुद्ध एक कारगर हथियार है। 

डॉ. जनमेजय जयपुर के व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी के चौथे व्यंग्य संग्रह: पुस्तक मेले में खोई भाषा! के लोकार्पण अवसर पर नोएडा स्थित इंडिया नेटबुक्स के कार्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रभात गोस्वामी की भाषा चमत्कृत करती है। गोस्वामी ने बहुत कम समय में अपनी जमींन तैयार कर ली है।

लोकार्पण कार्यक्रम में वरिष्ठ व्यंग्यकार, समालोचक प्रोफ़ेसर राजेश कुमार ने कहा कि व्यंग्य की भाषा को समझते और महसूस करते हुए प्रभात ने सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को आधार बनाकर व्यंग्य लिखे हैं। यही वजह है कि वह तीव्रता के साथ पाठकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं।

कार्यक्रम में युवा पीढ़ी के सक्रिय व्यंग्यकार, कवि और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक डॉ. लालित्य ललित ने कहा गोस्वामी की भाषा अचानक बल्ले पर आती हुई गेंद के सामान है, जिसे साधने में उनकी वर्षों साधना दिखाई पड़ती है। उन्होंने कहा कि आज के दौर के व्यंग्यकार विसंगतियों को पहचानते हुए आगे बढ़ रहे हैं। 

वरिष्ठ कवि एवं इंडिया नेटबुक्स के महाप्रबंधक डॉ. संजीव कुमार ने कहा की प्रभात गोस्वामी राजस्थान सक्रिय व्यंग्यकार हैं जो एक साथ कई भूमिकाओं में नज़र आते हैं। उनका चौथा व्यंग्य संग्रह पाठकों को पसंद आएगा।

पुस्तक के लेखक एवं व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी ने वेब संपर्क के ज़रिए सभी का आभार ज्ञापित किया। इंडिया नेटबुक्स प्रकाशन से प्रकाशित इस व्यंग्य संग्रह में कुल 44 व्यंग्य रचनाएँ शामिल की गईं हैं।
लोकार्पण कार्यक्रम में डॉ. मनोरमा कुमार, कथाकार राजेश्वरी मंडोरा, सूर्योदय सहित साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
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