जयपुर। आचार्य पंडित मदन शर्मा के नेतृत्व में मॉडल टाउन स्थित मंगलेश्वर महादेव मंदिर में सप्त दिवसीय महामृत्युंजय जप एवं नवग्रह शान्ति महायज्ञ संपन्न हुआ।
आचार्य श्री ने महामृत्युंजय जप यज्ञ का विधान संक्षिप्त रूप में बताया कि धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ को प्रदान करने वाले महामृत्युंजय देव के स्मरण मात्र से कलयुग में समस्त पापों का क्षय एवं समस्त रोगों का नाश होता है तथा भगवान महामृत्युंजय सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। भारतीय धर्म ग्रंथों में मनुष्य को व्याधियों से मुक्त करने के लिए अनेक उपाय बताए गए हैं। उन में सर्वश्रेष्ठ उपाय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना है।
महामृत्युंजय मंत्र की विशेष यज्ञ साधना
जब मनुष्य संकट में होता है और व्याधियों से घिरा होता है तो वह ईश्वर की शरण में जाता है। तब कहा जाता है कि दुआ दवा से ज्यादा कारगर साबित होती है। भारतीय धर्म ग्रंथों में मनुष्य को व्याधियों से मुक्त करने के लिए अनेक उपाय बताए गए हैं और उन में सर्वश्रेष्ठ उपाय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना है। महामृत्युंजय मंत्र अर्थात मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र है। जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है।
यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में भगवान शिव की स्तुति के लिए की गई एक वंदना है। इस मंत्र में शिव को मृत्यु को जीतने वाला बताया गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र माना जाता है। महामृत्युंजय मंत्र की खोज माकंर्डेय ऋषि ने की थी। यह एक गुप्त मंत्र था। इस मंत्र को जानने वाले दुनिया में केवल ऋषि माकंर्डेय ही थे।
इस प्रकार ध्यान करके रुद्राक्षमाला से महामृत्युंजय मंत्र का निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।
आचार्य पंडित विरेंद्र शास्त्री जी ने बताया की
मंत्र जाप प्रारंभ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर निम्न श्लोक पढ़कर संकल्प करें।
ॐ अस्य श्री महामृत्युंजय मंत्रस्य वसिष्ठ ऋषिः , अनुष्टुप छन्दः श्री महामृत्युंजय रुद्रो देवता हौं बीजं, जूँ शक्तिः, सः कीलकं, आयुः, आरोग्य, यशः, कीर्ति, पुष्टिः वृद्धि अर्थे जपे विनियोगः।
जप हेतु महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूँ सः।
ॐ भूर्भुवः स्वः।
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ।
सः जूँ हौं ॐ।
मंत्रजप की पूर्वनिर्धारित संख्या पूर्ण होने पर उस संख्या की दशांश संख्या में महामृत्युंजय मंत्र के अंत में "स्वाहा" शब्द जोड़कर आहुतियाँ देते हुए हवन करना चाहिए।
अपना संकल्प अर्पण करने हेतु हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें।
अनेन कृतेन भगवान महारुद्रः प्रीयतां न मम।
आचार्य भावेश नागर, आचार्य कमलेश शर्मा, आचार्य अमन जोशी, आचार्य शीतांशु शर्मा, आचार्य विनोद शर्मा, आचार्य गिरिराज शर्मा, आचार्य विष्णु शर्मा तथा आचार्य सुधाकर आदि आचार्यों के सहयोग से यह यज्ञ संपन्न हुआ।