जयपुर। मनसंचार विमर्श समूह द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में "जलवायु परिवर्तन" और "कतर में हुए फुटबॉल विश्वकप में हुई राजनीतिक एवं मज़हबी घटनाऐं" विषयों पर विचार व्यक्त किए गए।
सनराइज फुटबॉल क्लब के वरिष्ठ सदस्य आस्तिक दुबे ने फीफा वर्ल्ड कप में हुई अप्रत्याशित राजनैतिक और मज़हबी घटनाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि फीफा ने 211 देशों की टीम को मान्यता दे रखी है जबकि UN के अनुसार अभी 195 देश हैं जिसमें से 193 उसके सदस्य हैं। यह कुछ देशों में विवाद की स्थिति पैदा करने वाला है। वहीं दूसरी ओर दुबे ने बताया कि विजेता टीम अर्जेंटीना के कप्तान मेसी जब विश्वकप लेने गए तो उससे पहले उन्हें अरब परिधान पहना दिया गया जिसकी भरपूर आलोचना हो रही है। यह अर्जेंटीना टीम के लिए बेहद महत्वपूर्ण समय था लेकिन इस पल उनकी पहचान अरब परिधान से छुप गई। इतने बड़े वैश्विक आयोजन में 50 से भी अधिक देशों के लोग उपस्थित हुए थे लेकिन उनके कपड़ों, खाने पीने, रहन सहन पर सख्त पाबंदियां थी। उन्हें इसके अतिरिक्त ओपन ड्रिंक की अनुमति नहीं थी। आयोजन पर गहन धार्मिक प्रभाव आसानी से देखा जा सकता था। यहां तक कि एलजीबीटी के अधिकारों के लिए उपयोग में लिया जाने वाला सतरंगी झण्डा भी प्रतिबंधित था। दुबे का कहना था कि अगर इस तरह की कोई घटना यदि भारत में हुई होती तो इसकी घोर निंदा हुई होती लेकिन आयोजक देश के दबाव के कारण दुनियां में इसका कोई विशेष विरोध नहीं हुआ।
"जलवायु परिवर्तन" विषय पर बोलते हुए डॉ. अमित झालानी ने बताया कि बढ़ते औद्योगिकीकरण की वजह से वर्तमान में मृदा, जल, वायु सभी प्रदूषित हो रहे हैं। यह समस्या सिर्फ वर्तमान मनुष्य जाति के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी घातक सिद्ध होगी। डॉ. झालानी ने बताया कि पिछले 50 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में सामान्य से 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है और इस ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्राकृतिक आपदाएं 4 गुना से भी अधिक बढ़ गई है। समुद्री जल स्तर 10 इंच तक बढ़ गया है। आने वाले एक दशक में यह तापमान और अधिक बढ़ने पर पर्यावरण संकट और अधिक गहराएगा। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग के लिए मांसाहार को भी प्रमुख कारण बताते हुए कहा कि माँस का उत्पादन करने के लिए गेहूँ से 10 गुना अधिक पानी खर्च होता है। 1 किलो मांस उत्पादन में जहाँ 15000 लीटर से भी अधिक पानी चाहिए होता है वहीं गेहुँ में यह मात्रा प्रति किलो सिर्फ 1500 लीटर के करीब रहती है। उन्होंने बताया कि इससे बचने के लिए हमे एनर्जी कॉन्शसनेस अर्थात् ऊर्जा के उपयोग के प्रति चेतना बढ़ाने की जरूरत है। मनसंचार समूह की समन्वयक गायत्री जैफ ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त कर आगे भी इस तरह की परिचर्चाएं करने की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन सोनम कांबोज ने किया।